About the Book:
'उभरते शब्द' किताब में शब्द अपने आप में उभर रहे हैं। प्रकृति की गोद में बैठ कर फूलों में, पक्षियों में और पशुओं में बहुत कुछ सीख सकते हैं। फूलों की संवेदनाओं को.."मैं छत से ढ़क देती हूँ", इस प्रकार और 'कितनी ममता है इन जीवों में' कविताओं में दर्शाया गया है। सबसे अच्छी कविता 'तू ही' भगवान को मंदिरों में नहीं बल्कि प्रकृति में दर्शाया है जैसे "कैसे भरता तू अंगूरों में मीठा पानी, और रस्सी से भी मजबूत बेल घीये कद्दु की, क्यों नही गिरते चाँद, सितारे आदि, ड्राइवरों की, अन्धों की, दीन-हीन दरिद्रों की जिन्दगी की थोड़े शब्दों में गागर की सागर की तरह पेश किया है। सबसे ज्यादा बच्चों की शिक्षा-प्रणाली लेकर कैसे वो पिस रहे हैं जैसे - काश मैं जला पाती उन मोटी पुस्तकों को जो बच्चों को बूढ़ा बना देती है।
About the Author:
डॉ० राज कुमारी बंसल डी. ए. वी. कॉलेज अम्बाला से जीव विज्ञान' की प्रोफेसर रह चुकी हैं। उनकी नस-नस में विज्ञान की सच्चाई भरी हुई है जिसे उन्होंने काव्य से जोड़ कर अद्भुत कड़ी में पिरोया है। जो आस-पास देखा, लिख डाला। उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी से PH.D में गोल्ड मैडल प्राप्त किया है। कॉलेज के हर मैगज़ीन में उनकी रचनाओं को सराहा गया है और पाठकों ने और लिखने पर प्रेरित किया है। थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कह जाती हैं। प्रेम और रोमांस के बारे में तो बहुत कुछ लिखा जा चुका है लेकिन उन्होंने डॉक्टर की जिन्दगी, ड्राईवर, अन्धों, मेरुदंडी, मज़दूरों, आरक्षण में जलती कार आदि पर सीधा व्यंग किया है, उन्होंने भीड़ रूपी भेड़ों से हटकर शेर की तरह अलग लिखने की कोशिश की है।