About the Book:
काश ऐसा होता, काश वैसा होता। ऐसे न जाने कितने ही काश एक कसक बनकर हमारे मन में, हमारे दिल में रह जाते हैं जि नकी टीस, जिनका दर्द जिंदगी भर हमें सालता रहता है । कुछ ऐसे ही मेरे मन की कसक मैंने इस किताब में दि खाई है और मुझे यकीन है, जब आप सब ये किताब पढ़ेंगे तो अंत तक आते-आते कहीं ना कहीं मेरी कसक आपको अपनी सी कसक लगेगी ।
मेरे काश कहीं ना कहीं आपके काश से मिल ते हुए होंगे और मेरी इस कसक की टीस कहीं ना कहीं आपके दिल में भी दर्द बन कर धड़क ती होगी । तो चलिए मेरी इस कसक में अपनी कसक को ढूँंढिए । उम्मीद करुँ गी, यहीं कहीं आपकी कसक भी मिलगी ।
About the Author:
इस पुस्तक 'कसक' की लेखिका, रीशा गुप्ता लेखन के क्षेत्र मे अपनी एक पहचान बनाने की कोशिश कर रही है। इन्होंने कला क्षेत्र में स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में भी स्नातक की उपाधि प्राप्त की है। श्रीमती रीशा गुप्ता, एक आम गृहणी की सम्पूर्ण जिम्मेदारियाँ उठाते हुए अपने शौक को एक नई पहचान देने का निरंतर प्रयास कर रही हैं।
समय-समय पर इनके लिखे लेख और कहानियाँ समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं एवं एक हिंदी ऑनलाइन पोर्टल पर भी ये सक्रिय लेखिका की लगातार भूमिका निभा रही हैं। इन्होंने लेखन से जुड़ी कई प्रतियोगियाएँ जीती हैं। 'एक नया सफर' नाम से इनकी पहले भी एक पुस्तक प्रकाशित हो चुकी है।