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"तुम सही हो लक्ष्मी (Tum sahi ho Lakshmi)


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  • ISBN13:978-9390267460
  • ISBN10:9390267463
  • Publisher:StoryMirror Infotech Private Limited
  • Language:Hindi
  • Author:Dr Ramakant Sharma
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Highlights

  • ISBN13:978-9390267460
  • ISBN10:9390267463
  • Publisher:StoryMirror Infotech Private Limited
  • Language:Hindi
  • Author:Dr Ramakant Sharma
  • Binding:Paperback
  • Pages:176
  • SUPC: SDL854068612

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Other Details
Country of Origin or Manufacture or Assembly India
Common or Generic Name of the commodity General Fiction
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Description

"About Book:
डॉ. रमाकांत शर्मा उन कथाकारों में से हैं जो मनुष्य की भीतरी परतों का विश्लेषण कर सामाजिक, आर्थिक और वैयक्तिक ऊहापोहों को अक्षरबद्ध करते हैं। तुम सही हो लक्ष्मी संग्रह एक विशिष्टता लिये हुए है कि कहानियों में विविधता बहुत है। एक ओर जहां मनोविश्लेषण है, वहीं सामाजिकता भी है, परिवार बांधे रखने के लिए उदाहरण भी हैं, वे भी दिखावटी नहीं, बल्कि सहज, स्वाभाविक रूप में सब घटित होते चलता है क्योंकि अभी भी समाज में सकारात्मक शक्तियां हैं। ऐसे ही सकारात्मक पात्रों के इर्द-गिर्द कथावस्तु का ताना-बाना बुना गया है। इस संग्रह की कहानियों में मनुष्य के अतल मन की गहराइयों की थाह ली गई है। मनुष्य अपने व्यवहार से अपने मन को प्रकट करता है। डा. रमाकांत शर्मा मानव मन की अतल गहराइयों में पहुंच कर पात्रों के सुख-दु:ख से संवाद करते हैं। वही कहानी मन में जगह बना पाती है जिसमें यथार्थ का पुट हो, रोचकताभरा बयान हो और मनुष्य की भीतरी परतों की दास्तान हो। इस दृष्टि से इस संग्रह की कहानियां खरी उतरती हैं। कहानियों का कोई भी पात्र काल्पनिक नहीं लगता, वह जीता-जागता हाड़-मांस का मनुष्य है। इस संग्रह की कहानियों की भाषा बहुत सहज है, शैली कहानियों के मर्म तक पहुंचाने में सफल रही है। हर कहानी कोई न कोई संदेश देती है। यह संदेश, मौटेतौर पर लाउड न होकर मनोविश्लेषणात्मक ढंग से, मनुष्य के मन को अनेक आयामों, कोणों से निरूपित कर प्रस्तुत किया गया है।

About the Author:
डॉ. रमाकांत शर्मा उन कथाकारों में से हैं जो मनुष्य की भीतरी परतों का विश्लेषण कर सामाजिक, आर्थिक और वैयक्तिक ऊहापोहों को अक्षरबद्ध करते हैं। तुम सही हो लक्ष्मी संग्रह एक विशिष्टता लिये हुए है कि कहानियों में विविधता बहुत है। एक ओर जहां मनोविश्लेषण है, वहीं सामाजिकता भी है, परिवार बांधे रखने के लिए उदाहरण भी हैं, वे भी दिखावटी नहीं, बल्कि सहज, स्वाभाविक रूप में सब घटित होते चलता है क्योंकि अभी भी समाज में सकारात्मक शक्तियां हैं।

ऐसे ही सकारात्मक पात्रों के इर्द-गिर्द कथावस्तु का ताना-बाना बुना गया है।

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