हिंदी पत्रकारिता की मुख्यधारा में
विविध भूमिकाओं में महिलाओं की सहभागिता स्वतंत्रता के बाद लगातार बढ़ती गई है। महिला पत्रकारिता का आरंभ महिलाओं को आदर्श माँ और आदर्श पत्नी बनाने की समझाइश भरे आलेखन के साथ हुआ। परंतु जैसे-जैसे समय बढ़ता और बदलता गया वैसे-वैसे समसामयिक संदर्भो से महिला पत्रकारिता जुड़ती गई। कोई विषय, कोई क्षेत्र उससे अछूता नहीं रहा। आज महिला पत्रकारिता उस मोड़ पर पहुँच गई है, जहाँ वह अपेक्षा करती है कि हम समाज में अपनी योग्यता, प्रतिभा, दक्षता, लगन और कृतित्व के बलबूते समान महत्त्व और अवसरों की अधिकारी हों। जरूरत इस बात की है कि महिला पत्रकारों को किन्हीं खास चौहद्दियों में न समेटकर कार्यक्षेत्र का विशाल फलक सहज उपलब्ध हो। मूल तत्त्व यह कि पत्रकारों के बीच ऐसी किसी विभाजक रेखा का कोई औचित्य नहीं होता, जिसे महिला पत्रकार अथवा पुरुष पत्रकार के रूप में चिह्नित किया जाए।
महिला पत्रकारिता पर एकाग्र पहला विशद विवेचन।
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डॉ. मंगला अनुजा । 'स्वातंत्र्योत्तर हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में व्यंग्य' पर शोध प्रबंध लिखने वाली डॉ. मंगला अनुजा ने ‘हिंदी पत्रकारिता में आधी दुनिया' (महिला पत्रकारिता) विषय का गहन अध्ययन किया है। हिंदी की पहली महिला संपादक हेमंतकुमारी देवी चौधरी' मोनोग्राफ (प्रभात प्रकाशन) को देशव्यापी सराहना मिली। ‘सुभद्राकुमारी चौहान' मोनोग्राफ (स्वराज संस्थान) ने सुभद्राजी की जन्मतिथि संशुद्ध करने का काम किया।
‘गांधी और गणेश' पत्रकारिता के संदर्भ में चर्चित अध्ययन रहा है। ‘छत्तीसगढ़ : पत्रकारिता की संस्कार भूमि' और ' भारतीय पत्रकारिता : नींव के पत्थर' इनके दो उल्लेखनीय प्रकाशन हैं।