आमतौर पर संतजन स्वयं के लिए धार्मिक आराधना एवं जनसंस्कार कार्य करते हैं, लेकिन श्री चन्द्रप्रभ ने इस पुस्तक के माध्यम से जन-जन को राष्ट्रभावना से जोड़ दिया है। वे हमें भारत के नाम पर केवल कश्मीर से कन्याकुमारी तक की सीमाएं ही नहीं दिखाते, बल्कि इस बात के लिए भी प्रेरित करते हैं कि भारत केवल राष्ट्र नहीं, एक विचार है, संस्कृति है, सारी धरती को अपनी बांहों में समेटने के लिए सदभाव है। श्री चन्द्रप्रभ के ये दिव्य प्रवचन हमें शांति-सौहार्द के सुंदर पथ पर अग्रसर करने में मददगार बनेंगे।
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