प्रायः देखा जाता है कि गणित के बहुत से लेखक पुस्तकों में आकृतियाँ देने में कृपणता दिखाते हैं। कारण स्पष्ट ही है। महंगाई का समय है। चित्रकारों के पारिश्रमिक बढ़े हुए हैं। ब्लाकों की बनवाई में लागत अधिक लगने लगी है। ऐसी दशा में किसी पुस्तक में जितने अधिक चित्र होंगे, उतना ही अधिक मूल्य होगा। तथापि जब तक प्रत्येक आकृति विद्यार्थियों को खींचकर नहीं दिखाई जाती, तब तक तत्सम्बन्धी विषय उसे हृदयंगम नहीं होता। इस विचार से मैंने इस पुस्तक में आकृतियाँ प्रचुर संख्या में दी हैं। यद्यपि इस कारण पुस्तक का प्रकाशन-व्यय अत्यधिक हो गया। इस पुस्तक में मैंने केन्द्रीय सरकार के ‘पारिभाषिक शब्द-संग्रह’ के ही पारिभाषिक शब्दों का प्रयोग किया है। केवल कहीं-कहीं पर जहाँ मुझे उक्त शब्द-संग्रह में कोई शब्द मिला ही नहीं है, वहाँ मैंने स्वयं उपयुक्त शब्द का निर्माण किया है।