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Devotional Book (Set of 7 Books)

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Highlights

  • ISBN13:DEVTL7
  • ISBN10:DEVTL7
  • Age:15+
  • Language:Hindi
  • Author:Ramnath Gupta
  • Binding:Paperback
  • Publisher:MEERA PRAKASHAN
  • Edition:2021
  • Edition Details:2020-2021
  • SUPC: SDL520624163

Other Specifications

Other Details
Country of Origin or Manufacture or Assembly India
Common or Generic Name of the commodity Action, Adventure & Thriller
Manufacturer's Name & Address
Packer's Name & Address
Marketer's Name & Address
Importer's Name & Address

Description

गोपियों के साथ भगवान श्रीकृष्ण की रासलीला में एक मधुर आकर्षण है, जो अत्यंत मोहित करने वाला है, और गोपियों के श्रीकृष्ण के प्रति आत्मसमर्पण को दर्शाता है। यद्यपि यह लीला भौतिक प्रतीत होती है, किन्तु है यह आध्यात्मिक गोपियाँ स्त्री रूप में अवतरित महान तपस्वी थे जिन्हें अपने तप के फलस्वरूप रासलीला के रूप में प्रभु का सान्निध्य प्राप्त हुआ, और वे मोक्ष को प्राप्त हो गए। भागवतपुराण में शुकदेवजी ने इस रास लीला का सुंदर वर्णन किया है। इसके अतिरिक्त ब्रह्मवैवर्तपुराण और श्रीगर्गसंहिता में भी इस लीला का विशद् वर्णन है। इस पुस्तक के लेखन में इन तीनों ग्रंथों से सहायता ली गई है। महर्षि जैमिनी व्यासदेवजी के पाँच प्रधान शिष्यों में से एक थे और सामवेद के आचार्य थे। इन्होंने कई प्रसिद्ध पुस्तके लिखी हैं, जिनमें से एक ‘जैमिनीय महाभारत’ भी है, जो व्यासजी की महाभारत से भिन्न रचना है। वर्तमान में इस पुस्तक का केवल ‘आश्वमेधिक पर्व’ ही उपलब्ध है। इसमें कुछ कथाएँ व्यासजी-रचित ‘महाभारत’ में नहीं हैं। प्रस्तुत पुस्तक में जैमिनी ऋषि की इस पुस्तक का सार प्रस्तुत किया गया है और श्रीकृष्ण-सम्बंधित कुछ घटनाएँ ही दी गई हैं। इसमें भगवान के कुछ भक्तों (सुधन्वा, मयूरध्वज, वीरवर्मा, आदि) की बड़ी ही प्रेरणाप्रद कथाएँ सम्मिलित हैं।
पुस्तक में यथासंभव चित्रों का समावेश किया गया है, जिससे पुस्तक अधिक रोचक बन सके।श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर सात दिनों तक लगातार उठाये रखने, गोपों और उनके पशु-धन की रक्षा करने तथा इंद्र का गर्व भंग करने की लीला उनकी अलौकिक शक्ति का एक अंश मात्रा है। यह घटना दर्शाती है कि श्रीकृष्ण ही परम नियंता हैं और उनके द्वारा प्रदत्त अधिकारों से ही देवताओं को उनकी शक्तियाँ प्राप्त हुई हैं, जिनका उपयोग उन्हें जीवों की भलाई हेतु करना है।
प्रभु द्वारा इंद्र का दर्प भंग करने की अन्य घटनाएँ भी हैं, जिनमें दो प्रमुख हैं। पहली, जब वे अग्नि की तृप्ति हेतु खांडववन दाह के दौरान दावानल को बुझाने का उसका प्रत्येक प्रयत्न विपफल कर देते हैं दूसरी जब वे अपनी पत्नी सत्यभामा की इच्छापूर्ति हेतु इंद्र को युद्ध में हराकर स्वर्ग से परिजात वृक्ष द्वारका ले आते हैं।
भगवान की लीलाएँ अनोखी एवं सरस हैं, जिन्हें बार-बार पढ़ने अथवा सुनने से भी किसी भक्त की तृप्ति नहीं होती और उसकी उनके विषय में अधिक जानने की इच्छा उत्तरोत्तर बढ़ती ही जाती है, जो उसे उनके चरणों तक पहुँचाकर उसके लिए मोक्ष-प्राप्ति का द्वार खोल देती है।श्रीराधा श्रीकृष्ण की शक्ति हैं। राधा के बिना श्रीकृष्ण पूर्ण नहीं हैं यह बात तो वे स्वयं श्रीराधा से कहते हैं। राधा का चरित्र इतना विशाल और रहस्यमय है कि उसे समझना अत्यंत कठिन है। भागवतपुराण में राधा नाम का उल्लेख नहीं है क्योंकि इस पुराण के वाचक शुकदेवजी की वे परम आराध्या और गुरु थीं, अतः वे उनका नाम नहीं ले सकते थे।
राधा का विशद विवरण ब्रह्मवैवर्तपुराण, गर्ग संहिता, पद्मपुराण और नारद पंचतंत्र में है। इस पुस्तक के लेखन में इन सब ग्रंथों से सहायता ली गई है।गीता भगवान श्रीकृष्ण का अर्जुन को दिया गया अनमोल उपदेश है, जब वह महाभारत युद्ध के दौरान, अपने क्षत्रिय धर्म को त्याग कर युद्ध करने से विमुख हो रहे थे। श्रीकृष्ण का यह उपदेश मनुष्य को अपना निर्धारित कर्तव्य करने की राह दिखाता है * आत्मा की अमरता और उसकी गति का निरूपण करता है * समाज में मनुष्यों के विविध प्रकार बताता है * भक्तियोग, ज्ञानयोग और कर्मयोग की महिमा की व्याख्या करता है और सफल जीवन जीना सिखाने के साथ ही यह संदेश देता है कि भगवान की शरणागति ही संसार-सागर को पार करने का सर्वोत्तम उपाय है।
गीता सम्पूर्ण उपनिषदों का सार है। कहा गया है कि उपनिषद् यदि गाएँ हैं, तो गीता उनका दूध है। गीता का यह उपदेश इतना गूढ़ और सारगर्भित है कि एक साधारण मनुष्य के लिए इसे समझ पाना अत्यंत कठिन है। इस ग्रंथ के दुरूह विषय को सुगम बनाने हेतु भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के मध्य हुए संवाद को लिखा है, अर्थात् वे दोनों जो बातचीत कर रहे हैं, उसे पाठकों को सरल शब्दों में बताया गया है। यह एक नई शैली है, जिससे यह उपदेश सर्वसाधारण द्वारा सरलता से ग्रहण किया जा सकता है और इसे समझने में अधिक कठिनाई अनुभव नहीं होगी।
इस उपदेश के दौरान भगवान ने अर्जुन को अपनी जो विभूतियाँ बताई हैं, उनसे सम्बंधित यथासंभव चित्र दिए गए हैं, जिससे वे बोधगम्य बन गई हैं।
देवर्षि नारद का चरित्र अति पावन एवं ज्ञानियों का प्रेरणा ड्डोत है। लगभग सभी पुराणों और ग्रंथों में उनका और उनके द्वारा दिए गए उपदेशों का वर्णन है। उनके उपदेश बहुत ही सारगर्भित और शिक्षाप्रद हैं एवं आज भी सब के लिए प्रासंगिक हैं।
देवर्षि सभी देवताओं, मनुष्यों, राक्षसों आदि के पूजनीय रहे हैं और सबने उन्हें सम्मान दिया है। वे विष्णु के परमभक्त हैं और सारे संसार में उनका गुणगान करते हुए विचरण करते हैं।
नारदजी का प्रत्येक उपदेश भगवान की स्तुति से ओत-प्रोत है और श्रोता को भगवान की भक्ति की ओर प्रेरित करता है।
नारदजी को अपने चरित्र का कभी अभिमान नहीं हुआ। भगवान श्रीकृष्ण ने भी उनकी प्रशंसा की है जिसे इस पुस्तक में दिया गया है। नारदपुराण से उनकी ज्योतिष और गणितीय क्षमता के दर्शन होते हैं।‘अनुगीता’ महाभारत के ‘अश्वमेधिक पर्व’ में आती है । यह भी श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है, किन्तु इसकी शैली बिल्कुल ही भिन्न है । इस गीता में उपदेश रूपकों के माध्यम से दिए गए हैं तथा तीन रूपकों में सारा ज्ञान संजो दिया गया है । इस गीता की मुख्य विशेषता अदृश्य कर्मों और ब्रह्म–रूपी अदृश्य जगत का वर्णन है, जो बहुत ही रोचक और ज्ञानवर्धक है । जिन पाठकों ने महाभारत के ‘भीष्मपर्व’ में दी गई मूल गीता को पढ़ा है, उन्हें ‘अनुगीता’ बहुत ही रुचिकर लगेगी । इस गीता पर हिन्दी में पुस्तकों का अभाव है । आशा है, पाठक इस पुस्तक का स्वागत करेंगे । - Table of Contents - समर्पण * आमुख * रासलीला: श्रीमद्भागवतपुराणानुसार * रासलीलार: ब्रह्मवैवर्तपुराणानुसार * रासलीला: श्रीगर्गसंहितानुसार * गोपियाँ।आमुख * श्रीकृष्ण-भीम का हास-परिहास * अनुशाल्व के साथ युद्ध * सुधन्वा की कथा * बभ्रुवाहन के हाथों अर्जुन की मृत्यु और श्रीकृष्ण का उसे जीवन दान देना * ताम्रध्वज से युद्ध और उसकी विजय * मयूरध्वज के शरीर का आरे से चीरा जाना * राजा वीरवर्मा की कथा * राजा चन्द्रहास की कथा * जयद्रथ-पुत्र को जीवन दान * नारदजी की विनोदप्रियता और श्रीकृष्ण की व्यापकता * अश्व-वध * दो ब्राह्मणों का झगड़ा * जैमिनी ऋषि।गोवर्धन पर्वत धारण-लीलाराधारानी: एक विहंगम दृष्टि:- जन्म * श्रीकृष्ण के वामभाग से राधा का प्रादुर्भाव * ‘राधा’ शब्द की तात्विक व्याख्या * नामकरण * राधावतार * राधा-वल्लभ साम्यता * राधारानी के पच्चीस गुण * राधा को निःसंतानता का शाप * पृथ्वी लोक में राधारानी का कृष्ण से विवाह न होना * ब्रह्माजी द्वारा राधा-कृष्ण का विवाह * राधा नाम की महिमा * राधा की मदीया भक्ति * प्रभु की रुग्णता * श्रीमद्भागवत में राधा नाम का न होना * राधारानी का प्रभु द्वारा शृंगार * राधा-कृष्ण पुर्नमिलन * राधारानी को प्रभु द्वारा आध्यात्मिक योग के बारे में बताना * राधा द्वारा श्रीकृष्ण का अन्य स्त्रियों से प्रेम का वर्णन * राधा का अन्य गोपियों से डाह का चित्रण * राधा-श्याम की जोड़ी पर एक पद * राधा तथा व्रजांगनाओं की सिद्धाश्रम में श्रीकृष्ण से भेंट * राधारानी के सैंतीस नाम * राधारानी के सोलह नाम * राधा की सखियाँ * ललिता * नारदजी द्वारा राधा-दर्शन * नारायण ऋषि द्वारा नारदजी को राधा का रहस्य बताना * ऋग्वेद में राधा।देवर्षि नारद: एक परिचय * नारदजी का प्रादुर्भाव * नारदजी का वानर-रूप होना * दक्ष प्रजापति का नारद मुनि को शाप * नारदजी का कुबेर-पुत्रों को शाप * वसुदेवजी को भागवतधर्म की शिक्षा (नौ योगेन्द्रों से महाराज निमि की भेंट) * नारदजी का राजा बर्हिषत को उपदेश (वर्तमान जीवन, मृत्यु के पश्चात् जीवन और इनके निर्माण में मानसिक विचारों के महत्त्व का प्रतिपादन) * नारदजी का शुकदेवजी को उपदेश * नारदजी का राजा युधिष्ठिर को उपदेश
नारदजी द्वारा भगवान कृष्ण की गृहचर्या देखना * नारदजी को विष्णु-माया का दर्शन * श्रीकृष्ण द्वारा नारदजी के गुणों का वर्णन * नारदजी द्वारा भगवान श्रीकृष्ण को पूज्य-पुरुष के लक्षण बताना * भागवतपुराण लिखने हेतु व्यासजी को प्रेरित करना * विविध-प्रसंग: ‘नारद पंचरात्रा’ ग्रंथ * सनत्कुमार का नारदजी को उपदेश * ‘रामायण’ की रचना में नारदजी का महत्त्वपूर्ण योगदान * सत्यनारायण-व्रत-कथा * श्रीकृष्ण की पटरानियांे से नारदजी द्वारा संगीत-शिक्षा प्राप्त करना आमुख, सिद्ध–महर्षि–कश्यप संवाद (पृष्ठभूमि, सिद्ध–महर्षि–कश्यप संवाद, टिप्पणी) । एक ब्राह्मण और उसकी पत्नी के मध्य संवाद (प्राण–अपान–संवाद, अन्तर्यामी की प्रधानता और ब्रह्म–रूपी वन, टिप्पणी, मन की निर्लिप्तताय परशुराम द्वारा क्षत्रिय–संहार छोड़ कर तपस्या के लिए जाना, राजा अम्बरीष की गाई हुई गाथा एवं ब्राह्मण–जनक संवाद, टिप्पणी, ब्राह्मण का अपने ज्ञाननिष्ठ स्वरूप का परिचय देना, टिप्पणी) । गुरु–शिष्य संवाद, ब्रह्माजी का ऋषियों को उपदेश (प्रकृति के तीन–गुणों का वर्णन, अहंकार से पंचमहाभूतों और इंद्रियों की सृष्टि, अध्यात्म, अधिभूत और अधिदैवत, निवृत्तिमार्ग, चराचर प्राणियों के अधिपति, धर्म आदि के लक्षण, विषयों की अनुभूति के साधन, क्षेत्रज्ञ की विलक्षणता, आदि–अंत का वर्णन, देह–रूपी कालचक्र, एक गृहस्थ के धर्म, एक ब्रह्मचारी, वानप्रस्थी और संन्यासी के धर्म, परमात्मा की प्राप्ति के उपाय, बुद्धिमान पुरुष की प्रशंसा, पंचभूतों के गुण, तपस्या का महत्व, क्षेत्रज्ञ (आत्मा) का स्वरूप और उसके ज्ञान की महिमा, उपसंहार ।

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