About the Book:
अशोक कुमार बैजल प्रणीत ‘दिल की कलम से’ में विविध रंग बिखरे पड़े हैं। जहाँ एक ओर ‘व्यथित क्यों मन मेरा’ में नायक चूड़ियों की खनक में एक अद्भुत स्वप्न की सृष्टि कर रहा है;वही दूसरी ओर नायक - विहीन नायिका के लिए रात्रि कालरात्रि बनकर उसे डस रही है। ‘बहुविध रंग रुपहले’ में जीवन को विविध विधाओं के रूप में देखा गया है। संस्मरण में तो कविमन जीवन के चरमोत्कर्ष पर ही जा पहुंचा है।‘मेरे गीत तुम्हारे हैं’ में नायक हर तरफ से निराश हो गया है ।
इसके अतिरिक्त ‘नदिया के पार’ और ‘दो अभिसारिकाएँ’ में जहाँ प्राकृतिक सौंदर्य का अद्भुत निरूपण है; वही दूसरी ओर प्रणय गीत ‘प्रशस्ति नाद गूँज उठे’ में युवा-वर्ग को नव निर्माण के प्रति सन्नद्ध किया गया है। ‘साँझ से सवेरे तक’ में प्रकृति की क्रमबद्धता की ओर इंगित किया गया है।बस यही सब कुछ तो है इस कलश में जो प्रकृति की माटी से बनाया है कुम्हार ने।
About the Author:
काव्य संकलन ‘दिल की कलम से’ की मूल प्रेरणा रचनाकार अशोक कुमार बैजल के दिल से निस्सृत हुई है। रचनाकर बाल्यकाल से ही साहित्यानुरागी रहा है। उपर्युक्त काव्य प्रेमी का जन्म १३ अक्टूबर १९४९ को कोटा शहर में हुआ। उसने ७ वर्ष तक हिंदी साहित्य का अध्ययन किया तथा १० वर्ष तक छात्रों को हिंदी साहित्य पढ़ाया है। वह एम. ऐ. (हिंदी साहित्य) तथा बी.एड. तक शिक्षा प्राप्त कर हिंदी साहित्य के व्याख्याता के रूप में १० वर्ष तक कार्यरत रहा। इसके अतिरिक्त समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र तथा अंग्रेजी साहित्य उसके विषय रहे हैं। एम. ऐ. में हिंदी साहित्य के अतिरिक्त पाली भाषा भी उसके अध्ययन का विषय रही है।