About the Book:
सच को प्रमाणित करतीं , वर्तमान जीवन की अनन्त गहराई में उतर कर यथार्थपरक और दिल को छू लेनेवाली छोटी- छोटी कहानियों का यह संकलन है ।कथ्य बंधे और कसे हैं,रचना शिल्प का अदभुत सौंदर्य है,शब्द संयोजन और संवाद की जीवंतता पाठक को अंतिम पृष्ठ तक पढ़ने के लिए विवश कर देंगी ।इस पुस्तक में व्यक्ति,परिवार, समाज,परम्परा और देश की अकथ कथाएं तो हैं ही राजनीति और अफ़सरशाही के मध्य का विद्रूप तथा कला के नाम पर परोसी जाने वाली सड़न की शल्य क्रिया भी की गई है।
About the Author:
प्रसारण (आकाशवाणी ) की दुनियां में चार दशक तक सेवा देने के बाद स्वतंत्र लेखन की टूटी-छूटी कड़ियों को जोड़ने के लिए लौट आए हैं श्री प्रफुल्ल कुमार त्रिपाठी ।प्रजातंत्र की ढाल लेकर पनप रही घृणित और हिंसक राजनीति या व्यक्ति और समाज में गिरते और छीजते नैतिक मूल्य पर खुलकर प्रहार न कर पाने के कारण उनके मन रुपी राख की दबी आग वर्ष 2013 में सेवानिवृत्त होने के बाद अब ज्वाला बनकर स्वतंत्र लेखन के रुप में सामने आ रही है ।इसीलिए वे अपनी बेधड़क बातें सीमित किन्तु प्रभावशाली ढंग से कह डालते हैं।इसीलिए टाटा प्रतिष्ठान ने अ.भा.स्तर की एक साहित्यिक प्रतियोगिता में आई 25 हजार प्रविष्टियों में इन्हें प्रथम पुरस्कार के रुप में सम्मानित करते हुए टाटा इंडिका गाड़ी प्रदान किया था । वे मूलतः गोरखपुर के हैं किन्तु अब लखनऊ में रहते हुए देश की विभिन्न पत्र - पत्रिकाओं और वेब पोर्टल और ब्लाग को अपना साहित्यिक योगदान दे रहे हैं।