Brand Waali Quality, Bazaar Waali Deal!
Impact@Snapdeal
Help Center
Sell On Snapdeal
Download App
Cart
Sign In
Compare Products
Clear All
Let's Compare!

Love Gure


MRP  
Rs. 300
  (Inclusive of all taxes)
Rs. 273 9% OFF
(2) Offers | Applicable on cart
Get 10% instant Discount Using BOB Credit Cards
Apply for a Snapdeal BOB Credit Card & get 5% Unlimited Cashback T&C
Pack
Pack of 1
Delivery
check

Generally delivered in 1 - 4 days

  • ISBN13:9789360708207
  • ISBN10:9789360708207
  • Publisher:StoryMirror InfotechPvt.Ltd
  • Binding:Hardback
  • BIS/ISI License number:NA
  • View all item details
7 Days Replacement
This product can be replaced within 7 days after delivery Know More

Featured

Highlights

  • ISBN13:9789360708207
  • ISBN10:9789360708207
  • Publisher:StoryMirror InfotechPvt.Ltd
  • Binding:Hardback
  • BIS/ISI License number:NA
  • BIS/ISI required:NA
  • SUPC: SDL998221456

Other Specifications

Other Details
Country of Origin or Manufacture or Assembly India
Common or Generic Name of the commodity Romance
Manufacturer's Name & Address
Packer's Name & Address
Marketer's Name & Address
Importer's Name & Address

Description

About the Book:

अब मैं क्या कुछ बोलूँ माउसीजी लोग और ओफकोर्स माउसा जी भी
अच्छा तो सूनो, पढ़ो या वोटएवर तीन दोस्त, एम बी ए कोलेज और उन तीनों की दोस्ती को यादगार बनाने के लिए वह तीनों मिलकर एक दूसरे का गला घोट देते हैं!!!! मेरा मतलब है कि लवगुरु से प्रेरणा और प्रेम का ज्ञान पाकर तीनों मनपसंद लड़कियों से शादी याँने की बर्बादी कर लेते है……
कैसे, कब, कहाँ ओर क्यों ??? जानने के लिए आगे पढ़े


About the Author:

“तुम्हें क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा? तेरे सामने यह मेरा हाल
है। तेरी एक निगाह की बात है, मेरी ज़िंदगी का सवाल है।”
ऐसा लवगुरु कह रहे हैं और उनके साथ मैं भी कह रहा
हूँ क्योंकि मेरा जन्म शायरों के परिवार में नहीं हुआ, बल्कि होटलवालों के परिवार में हुआ है। मुझे बचपन
से रचनात्मकता का शौक़ रहा है, शायद इसलिए यह
किताब लिखने की प्रेरणा मुझे मिली। मैंने कभी सोचा
भी नहीं था की मैं एक दिन एक किताब लिखूँगा। अच्छा, तो मैं अगर मेरी प्रेरणा की
बात करूँ तो वह मुझे फ़िल्म सरफ़रोश से मिली। जब मैंने छुपी पुलिस
की वर्दी क्लब में देखी तो मैं कुछ ज़्यादा ही प्रभावित हुआ और मैंने सोचा कि हे
भगवान! यह फ़िल्म बनाना कितना रचनात्मक है। फिर मुंबई में कृष्णा शाह जी, जो
हिन्दी फ़िल्म शालीमार के निर्देशक रह चुके हैं के दो दिन के सेमिनार में मैं हाज़िर
रहा और पुणे में भी 45 दिनों तक, फ़िल्मों की पटकथा कैसे लिखी जाती है, उसकी कार्य प्रणाली सीखी और बस कुछ दिनों के बाद बैठे-बैठे यह वार्ता दिमाग में अचानक से क्लिक हुई और थोड़ा सा, वार्ता का विकास किया और आप सभी लोगों तक पहुँचा
दी। लेकिन इस का पूरा श्रेय मैं श्री कृष्ण भगवान को ही दूँगा क्योंकि मुझे लगता
है कि यह वार्ता उनकी कृपा से ही मेरे दिमाग में आई। मैं झूठ नहीं बोलना चाहता
इसलिए आप सभी को सच-सच बता रहा हूँ! बस इतनी सी बात है।

Terms & Conditions

The images represent actual product though color of the image and product may slightly differ.

Seller Details

View Store


Expand your business to millions of customers