"प्रायः मुहावरे एवं लोकोक्तियों को एक ही समझ लिया जाता है लेकिन रूप और अर्थ दोनों ही प्रकार से इनमें पर्याप्त भिन्नता होती है। मुहावरा ऐसा शब्द-समूह होता है, जो अपने शब्दों के निहित अर्थ न देकर उससे भिन्न, किन्तु एक रूढ़ अर्थ देता है। मुहावरा अभिधेय अर्थ का अनुसरण नहीं करता वरन् वह अपना विलक्षण अर्थ प्रकट करता है।
लोकोक्ति का अर्थ है लोक+उक्ति; अर्थात् लोक में प्रचलित उक्ति। जो उक्ति समाज में चिरकाल से प्रचलित होती है, उसे लोक प्रचलित उक्ति अर्थात् लोकोक्ति कहते हैं। लोकोक्तियाँ भूतकाल के अनुभव और प्रेक्षण का संचय होती हैं। लोकोक्तियों में लोक-बोध, लोक-मान्यता और लोक-स्वीकृति होती है।
मुहावरों और लोकोक्तियों में रूप और अर्थ सम्बन्धी अन्तर होता है। रूप सम्बन्धी पहला अन्तर यह है कि मुहावरों के अन्त में अधिकांशतः ना अक्षर होता है, जैसे-सिर धुनना, आँख लगना, टेढ़ी खीर होना, मक्खी मारना, आसमान सिर पर उठाना आदि जबकि लोकोक्तियों के अन्त में ना अक्षर नहीं होता, जैसे-आ बैल मुझे मार, का वर्षा जब कृषि सुखानी, दीवार के भी कान होते हैं और धोबी का कुत्ता, घर का न घाट का, आदि।
प्रस्तुत पुस्तक ‘मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ’ की रचना इस बात को ध्यान में रखकर की गई है कि यह सामान्य पाठक और परीक्षार्थी दोनों के लिए लाभदायक सिद्ध हो सके एवं इसके अध्ययन के बाद उन्हें किसी अन्य पुस्तक के अध्ययन की आवश्यकता न पड़े। मुहावरे एवं लोकोक्तियों का क्षेत्रा अगाध है तथा यह बराबर विकासमान भी है। यही कारण है कि इस पुस्तक के परिष्कार एवं परिवर्द्धन की आवश्यकता सदैव बनी रहेगी। "