भारत में पिछले 50 वर्षों के दौरान जनजातीय जीवन के संबंध में
नृ-पुरातात्त्विक अध्ययन का महत्त्व बढ़ा है। नृ-पुरातत्त्व के अंतर्गत समकालीन सामाजिक-सांस्कृतिक व्यवहारों तथा भौतिक संस्कृति के विभिन्न तत्त्वों का अध्ययन प्राप्त पुरातात्त्विक अवशेषों की विशेषताओं के आधार पर किया जाता है। इस पद्धति ने जनजातीय अध्ययन को बड़ा फलक प्रदान किया है। इसमें परिवर्तन तथा निरंतरता का विशेष महत्त्व है। पहाडि़या आदिम जनजाति पर पूर्व में किए गए शोध व लेखन की तुलना में यह पुस्तक कई मायनों में खास है। यह पहाडि़या जीवन पर शोध की दिशा में ठोस वैज्ञानिक आधारों पर
नृ-पुरातात्त्विक अध्ययन प्रस्तुत करती है।
लेखक डॉ. सुरेंद्र नाथ तिवारी ने इस पुस्तक में पहाडि़या जनजाति पर शोधपरक अध्ययन प्रस्तुत करते हुए इसकी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक स्थितियों का सांगोपांग वर्णन किया है। इसमें आदियुग के कई सूत्र छिपे हुए हैं, जो समाजशास्त्रियों, नीति-निर्माताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं सहित आम पाठक के साथ-साथ इतिहासकारों व पुराविदों को भी रुचिकर लगेंगे।
- About the Author - डॉ. सुरेंद्र नाथ तिवारी
शिक्षा : भौतिक विज्ञान (ऑनर्स) में स्नातक, इतिहास व मानवशास्त्र में स्नातकोत्तर, पी-एच.डी.।
पुरस्कार व सम्मान : इंडो-नेपाल सांस्कृतिक एकता अवार्ड-2018 (अंतरराष्ट्रीय समरसता मंच, नई दिल्ली व काठमांडू); 17वें करमापा द्वारा सेवा सम्मान-2017 (बोधी ट्री सोसाइटी, बोधगया, बिहार); विद्यासागर अलंकरण-2015 (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर); युवा सम्मान-2011 (युवा व खेलकूद मंत्रालय, भारत सरकार); स्वामी विवेकानंद और सिस्टर मारग्रेट सम्मान-2016, कोलकाता।
संप्रति : निदेशक, झारखंड प्रा.आई.टी.आई., साहिबगंज (झारखंड); अध्यक्ष, रोटरी क्लब और कौशल्या ज्योति ट्रस्ट,साहिबगंज।
संपर्क : जयप्रकाश नगर, साहिबगंज, पो. व जिला-साहिबगंज-816109 (झारखंड)।
दूरभाष : 9155582222, 7004511208 • इ-मेल : sairam.816109@gmail.com