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Rishto ke Jakhm (रिश्तों के जख्म)

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  • ISBN13:978-9388698795
  • ISBN10:9388698797
  • Publisher:StoryMirror Infotech Pvt. Ltd.
  • Language:Hindi
  • Author:Asha Gandhi
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Highlights

  • ISBN13:978-9388698795
  • ISBN10:9388698797
  • Publisher:StoryMirror Infotech Pvt. Ltd.
  • Language:Hindi
  • Author:Asha Gandhi
  • Binding:Paperback
  • Pages:68
  • SUPC: SDL714897568

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Other Details
Country of Origin or Manufacture or Assembly India
Common or Generic Name of the commodity Literature & Fiction
Manufacturer's Name & Address
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Description

About the Book:
इन्सान पैदा होते ही जाने कितने ही रिश्तों में बंध जाता है और अपने साथ कितनों को नए रिश्तों में बाँध लेता है। मम्मी, पापा, भाई, बहन, दादा, दादी और भी न जाने कितने रिश्ते! थोड़ा बड़ा होता है तो घर से बाहर निकलते ही दोस्ती का रिश्ता बना लेता है। और शादी होने पर पति पत्नी का एक पवित्र रिश्ता; उसके बाद शायद फिर से एक बार नए रिश्तों की बरसात सी आ जाती है ।जीवन भर इन रिश्तों के दायरे में रह कर अपनी मर्यादाओं व ज़िम्मेदारियों को निभाते हुए इन रिश्तों में ही उम्र भर खो कर रह जाता है। कुछ रिश्ते नज़दीकी होने पर भी हाथ में रखे बुलबुलों की तरह फिसल कर दिलों से दूर हो जाते हैं और फिर उन्हें पकडकर रखने पर, जीवन भर ज़ख्म बनसाथ चलतेतो हैं ,लेकिनजब इन रिश्तों के ज़ख़्म नासूर बन कर रिसने लगते हैं तब सिवाय दर्द के कुछ नहीं मिलता।इन बुनियादी रिश्तों से अलग होकर कभी-कभी इंसान कुछ ऐसे रिश्ते भी बना लेता है, जिनका कोई
नाम नहीं होता। दिलों से जुड़े रिश्ते इन बुनियादी रिश्तों से कई गुना बड़े हो जाते हैं क्योंकि उन्हें बदले में ना कुछ लेने की ख़्वाहिश होती है और ना ही ढोंग या छल। वे सिर्फ़ हमदर्द बनकर दिलों में मरहम बन जाते है । ऐसे रिश्ते; इस समाज के बनाए तमाम रिश्तों से कहींऊपर होते है। रिश्तों की इन सिसकती तड़प और पीड़ा को सहते-सहते मानसी एक मूरत बन कर रह गई थी, उम्र भर उन रिश्तों के बोझ में दबी हुई आख़िरी साँस का इंतज़ार करके बैठी थी और फिर……

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