वक्ता की वाणी से उसकी विद्वता, संस्कार, स्वभाव और विवेक का सहज ही पता चल जाता है। विद्वान वक्ता वही होता है, जो कभी हीन अथवा कटु भाषा का प्रयोग न करे। वह अपनी बात को इस ढंग से प्रस्तुत करता है कि किसी सभा, समाज या ऑफिस में कोई अनावश्यक विवाद खड़ा नहीं हो पाए। वह जो कहता है, उस पर स्वयं अमल भी करता है। इस कला को कैसे सीखा और विकसित किया जाए, इसी की जानकारी देती है यह पुस्तक।
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