“धूप का बोझ” और “दो शब्दों के बीच” इन दो पुस्तकों के प्रकाशन के उपरान्त “सत्य की दस्तक” समवेत प्रकाशन से प्रकाशित होने वाली श्री कृष्ण सिंह हाडा जी की तीसरी पुस्तक है।
पिछली दो पुस्तकों से इतर इस पुस्तक “सत्य की दस्तक” में श्री हाडा जी ने शब्द-विन्यास और लेखन का मूल ताना-बाना हमारे समाज में बाहरी आडम्बरों, अंध-विश्वासों और समाज में बड़ी गहराई तक व्याप्त निर्मूल-निराधार परम्पराओं-मान्यताओं के इर्द-गिर्द बुनकर अपनी रचनाओं के माध्यम से सार्वभौमिक और सर्वमान्य सनातन सत्य को उजागर करने का अनुपम प्रयास किया है।
श्री हाडा जी अपनी रचनाओं में जिन बदलावों की बात कर रहे हैं; उन बदलावों पर समाज की दृष्टि डलवाना सामाजिक संरचना को सुदृढ़ करने और हमारे समाज से बैर भाव को ख़त्म कर प्रेम और अपनत्व भाव के साथ आगे बढ़ते रहने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
इन रचनाओं में हिंदी, अरबी, उर्दू, फ़ारसी के साथ-साथ कुछ ऐसे शब्द भी मिलते हैं जो सामान्यतः मूलधारा की हिंदी कविताओं में नहीं पाये जाते जो कि इनकी रचनात्मकता के साथ-साथ प्रयोगधर्मिता का भी अप्रतिम उदाहरण है, इतना सब होने के बावजूद भी आप पाएंगे कि भाषा की सरलता, सहजता और भाव की व्यापकता पर विशेष ध्यान दिया गया है।