बुद्धिमत्ता को आमतौर पर सोचने और सीखने की क्षमता के तौर पर देखा जाता है, लेकिन तेज़ी से बदलती दुनिया में संज्ञानात्मक कौशल का एक और पहलू भी है, जो ज़्यादा महत्वपूर्ण हो सकता है, यानी पुनर्विचार करने और जो सीखा है उसे भूलने की क्षमता। हमारी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में, हम में से बहुत से लोग संदेह की असुविधा के बजाय दृढ़ विश्वास की सुविधा को प्राथमिकता देते हैं। हम उन विचारों को सुनते हैं जो हमें अच्छा अनुभव कराते हैं, बजाय उन विचारों के जो हमें गहराई से सोचने पर मजबूर करते हैं। हम असहमति को सीखने के अवसर की बजाय अपने अहंकार के लिए ख़तरा मानते हैं । हम खुद को ऐसे लोगों से घिरा रखते हैं जो हमारे निष्कर्षों से सहमत होते हैं, जबकि हमें उन लोगों की तरफ़ आकर्षित होना चाहिए जो हमारी वैचारिक प्रक्रिया को चुनौती देते हैं। हम अपने पवित्र विश्वासों का बचाव करने वाले उपदेशकों, दूसरे पक्ष को ग़लत साबित करने वाले अभियोजकों और अनुमोदन के लिए अभियान चलाने वाले राजनेताओं की तरह बहुत ज़्यादा सोचते हैं। सत्य की खोज करने वाले वैज्ञानिकों की तरह हम बहुत कम सोचते हैं। बुद्धिमत्ता कोई इलाज नहीं है, यह एक अभिशाप भी हो सकती है : सोचने में अच्छा होना हमें पुनर्विचार करने में ख़राब बना सकता है। हम ख़ुद को जितना ज़्यादा बुद्धिमान समझेंगे, हम अपनी सीमाओं के प्रति उतने ही अनजान भी हो सकते हैं। सुस्पष्ट विचारों और ठोस सबूतों के साथ, ग्रांट पड़ताल करते हैं कि हम ग़लत होने की ख़ुशी को कैसे आत्मसात कर सकते हैं, आवेगपूर्ण बातचीत में बारीकियों को कैसे ला सकते हैं, और आजीवन सिखाने वाले स्कूलों, कार्यस्थलों और समुदायों का निर्माण कैसे कर सकते हैं। थिंक अगेन से पता चलता है कि हम जो कुछ भी सोचते हैं, उस पर विश्वास करने या जो कुछ भी हम महसूस करते हैं, उसे आत्मसात करने की ज़रूरत नहीं है। यह उन विचारों को छोड़ने का निमंत्रण है, जो अब हमारे लिए अच्छे नहीं हैं । यह वक़्त मूर्खतापूर्ण स्थिरता पर मानसिक लचीलेपन, विनम्रता और जिज्ञासा को महत्व देने का है। यदि ज्ञान शक्ति है, तो जो हम नहीं जानते, उसे जानना ही बुद्धिमत्ता है।